Monday, July 15, 2013

मैंने माना नहीं

आँखों से जो देखा
उसे भी मैंने माना नहीं
किसी ने जो कहा
उसे भी मैंने सुना नही
हर गलती उसकी
दिल में छुपती चली गयी
हर झूठी बात उसकी
मन को सच लगती रही
टूटा दिल आया यकीं
जिंदगी में उसकी
मैं तो था ही नहीं
एहसास हुआ आज
उसकी जिंदगी में
मैं तो था भीड़ का एक भाग
मैं ही खड़ा था उसके साथ
अकेला तनहा

Sunday, July 7, 2013

Black hole of life

Its easy to preach
but so hard to follow
When you see her in pain
it takes you a moment to say
Be relax it just goes on
But clock rotates
its your turn to just move on
Now you realize
how tough is to keep mind off
You just want to run away
But you hold for last glimpse
And your conviction just fly away
You are again on same road
shattered in pieces
looking in a black hole

Friday, May 10, 2013

दोस्त की आशिकी



आंसुओं से अपनी किस्मत लिख दी है
जबसे तुमसे मुहब्बत कर ली है
ना दूर मैं जा सकता हूँ
ना इजहार-ए-इश्क कर सकता हूँ
कहती है तू इस दोस्ती के पाक दामन में
यह लफ्ज गवारा नहीं
कैसे समझायूं तुझे कि मेरी मुहब्बत में
छुपी है दोस्ती की गहराई कहीं
शायद ये वक़्त गुजर जायेगा
आने वाले कल में आज भूला बिसरा हो जायेगा
धूल जम जायेगी यादों की तस्वीरों पर
फिर भी इस की में दोस्त नजर आयेगा

Saturday, January 19, 2013

I Just want


I just want to sleep
but my eyes are still wide open
dreaming of her

I just want to relax
but my mind is still in chaos
waiting of her call

I just want to scream
but my tounge is still tied
expecting of her

I just want to express my love
but my heart is sinking
fearing of her denial

नाराजगी जायज है


हर किसी के नाराजगी के मायनों
 में अंतर होता है

कुछ लोगों की नाराजगी में
गुस्सा होता है

कुछ लोगों की नाराजगी में
इनकार होता है

कुछ लोगों की नाराजगी में
तकरार होती है

कुछ लोगों की नाराजगी में
दुविधा होती है

पर नाराजगी उन्ही से होती है
जिनकी हमें फिक्र होती है

नाराज होने वाले लोग
पर ये समझते क्यूँ नही
कि कहने वाले कि कोई मजबूरी थी
वरना वो हर बार ऐसी बात कहते तो नही !

ऊपर वाले की दुनिया


ऊँची इमारतों चमकते शीशों में बंद
एक दुनिया है
फुटपाथ के किनारे चिथड़ों में लिपटी
एक दुनिया है
दूरी है चंद क़दमों की
पर अंतर है युगों युगों  का
कहीं चाँद पर जाने की तैयारी है
कही भूख की बीमारी है
कही उचटती निगाहों से
कई सकुचाती निगाहों से भरी
एक दुनिया है
पर साँझ ढले हलके धुधलके में
निकलती है बच्चों की रेल दोनों दुनिया से
बनता है कोई गाडी और कोई सवारी
देख बच्चों की गाड़ी लगता है
शायद यही ऊपर वाले की दुनिया है !

Friday, November 9, 2012

इस उम्र में बचपन


आज  की इस दुनिया में
स्वार्थ की इस दौड़ में
खोकर अपनी मासूमियत
जिंदगी उम्र से पहले बड़ी हो जाती है !
इस समय इस उम्र में
तेरी बचपन जैसी मासूमियत
बच्चों जैसी हरकतें वो खिलखिलाहट
मुझे लुभाती है!
इस लुभावने स्वप्न में
तेरी ये ख़ूबसूरत आँखें
हाथों को थामकर चलने के लिए
मुझे बुलाती हैं !
पर जिंदगी के इस जंगल में
तुम्हारी यही मासूमियत
यही अनजानापन यही सादगी
मुझे डराती है !
फिर भी इन तपती राहों में
मेरी ये बेजार जिंदगी
तेरे बचपन की छाँव चाहती है !