ऊँची इमारतों चमकते शीशों में बंद
एक दुनिया है
फुटपाथ के किनारे चिथड़ों में लिपटी
एक दुनिया है
दूरी है चंद क़दमों की
पर अंतर है युगों युगों का
कहीं चाँद पर जाने की तैयारी है
कही भूख की बीमारी है
कही उचटती निगाहों से
कई सकुचाती निगाहों से भरी
एक दुनिया है
पर साँझ ढले हलके धुधलके में
निकलती है बच्चों की रेल दोनों दुनिया से
बनता है कोई गाडी और कोई सवारी
देख बच्चों की गाड़ी लगता है
शायद यही ऊपर वाले की दुनिया है !
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