Saturday, January 19, 2013

ऊपर वाले की दुनिया


ऊँची इमारतों चमकते शीशों में बंद
एक दुनिया है
फुटपाथ के किनारे चिथड़ों में लिपटी
एक दुनिया है
दूरी है चंद क़दमों की
पर अंतर है युगों युगों  का
कहीं चाँद पर जाने की तैयारी है
कही भूख की बीमारी है
कही उचटती निगाहों से
कई सकुचाती निगाहों से भरी
एक दुनिया है
पर साँझ ढले हलके धुधलके में
निकलती है बच्चों की रेल दोनों दुनिया से
बनता है कोई गाडी और कोई सवारी
देख बच्चों की गाड़ी लगता है
शायद यही ऊपर वाले की दुनिया है !

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