ख़ामोशी में अपनी डूबकर
उसके चेहरे को निहारना चाहता था
जाती हुई उसकी कश्ती को देखकर
लहरों में खो जाना चाहता था
साथ बिताये हर लम्हों को यादकर
शब्द माला में पिरोना चाहता था
प्रथम मिलन की उस जगह बैठकर
छवि उसकी रंगों में उकेरना चाहता था
बिना उसके बोझिल कदमों से चलकर
वो आशिक दो कदम चल बिखर जाता था
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