देख मंजिल को सामने
मजबूत होते हैं इरादे
बढ़ते हैं कदम
कम होती हैं दूरियां
आती हैं बाधाएं
टूटती हैं आशाएं
चलता हूँ दो कदम वापस
बटोरता हूँ बढ़ने का साहस
कल्पना करता हूँ मंजिल की
जिद करता हूँ न झुकने की
बस चार कदम चलना है बाकी
उन सपनों की छाँव में सोना है बाकी
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