आखिर मैं क्यूँ चाहता हूँ इतना उसको
बोल भी नही पाता हूँ दो शब्द उसको
डरता हूँ किसी शब्द का बुरा ना मान जाये
डरता हूँ मेरी नजर कुछ एहसास ना करा जाये
इसलिए मैं बात करता हूँ उसकी तस्वीर से
इसलिए मैं उसका दीदार करता हूँ दूर से
जानता हूँ उस चाँद को छू ना पाउँगा मैं
पर इस इजहार-ए-इश्क को कब तक रोक पाऊंगा मैं
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