Sunday, May 13, 2012

आखिर कब कहूँगा मैं


आखिर मैं क्यूँ चाहता हूँ इतना उसको
बोल भी नही पाता हूँ दो शब्द उसको
डरता हूँ किसी शब्द का बुरा ना मान जाये
डरता हूँ मेरी नजर कुछ एहसास ना करा जाये
इसलिए मैं बात करता हूँ उसकी तस्वीर से
इसलिए मैं उसका दीदार करता हूँ दूर से
जानता हूँ उस चाँद को छू ना पाउँगा मैं
पर इस इजहार-ए-इश्क को कब तक रोक पाऊंगा मैं

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