हर आँसू पर
क्या उसका नाम लिखा था
हर काँटों की डगर पर
क्या उसका नाम लिखा था
पैदा होने से पहले मौत पर भी
क्या उसका नाम लिखा था
भाई की झूठन पर भी
क्या उसका नाम लिखा था
उसके बचपन पर
घर का बोझ रखा था
उसकी किताबों पर
दहेज़ का बोझ रखा था
उसके सपनों पर
मर्यादा का बोझ रखा था
उसके जीवन पर
उपेक्षा का बोझ रखा था
इन काँटों पर भी चलकर
इस बोझ को भी उठाकर
हद तब हुई जब
उसकी फूटी किस्मत में
दहेज़ से जलना लिखा था !
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