Sunday, May 13, 2012

है कदम चंद बाकी


है दिन चंद बाकी
हिम्मत ना हार साथी
कदम तू चंद चलेगा
सपनों का फल मिलेगा
खड़ा है मुश्किलों का पहाड़ सामने
हार का भय है अवरोध मार्ग में
त्याग इस भय को
हो निर्भय बढ़ पथ पर
कर दृष्टिपात बस मंजिल पर
उदारहण अनेक हैं इतिहास के गर्भ में
कहानियां अंकेक हैं लोगों के मन में
जब चंद कदमो की दूरी ने
किसी की किस्मत बदली है

आखिर कब कहूँगा मैं


आखिर मैं क्यूँ चाहता हूँ इतना उसको
बोल भी नही पाता हूँ दो शब्द उसको
डरता हूँ किसी शब्द का बुरा ना मान जाये
डरता हूँ मेरी नजर कुछ एहसास ना करा जाये
इसलिए मैं बात करता हूँ उसकी तस्वीर से
इसलिए मैं उसका दीदार करता हूँ दूर से
जानता हूँ उस चाँद को छू ना पाउँगा मैं
पर इस इजहार-ए-इश्क को कब तक रोक पाऊंगा मैं