Monday, April 9, 2012

ना कर पाया

मैं कुछ कहना चाहता था
पर कह ना पाया
में उस चाँद को छूना चाहता था
पर छू ना पाया
मैं उसे जी भर कर निहारना चाहता था
पर नजर भी उठा न पाया
मैं उसकी बातों में जिंदगी गुजरना चाहता था
पर उसकी हेल्लो का जवाब भी नही दे पाया
मैं अपने सपनो को हकीकत में चाहता था
पर बदल ना पाया
ये सब हुआ क्यूंकि
मैं उससे प्यार का इजहार करना चाहता था
पर वो भी ना कर पाया

मेरी नजर

नव वर्ष के आगमन पर
झूमते कदमो की थिरकन पर
चहकते चेहरो की रोशनी पर
फूटते पटाखों की रोशनी पर
मेरी नजर थी
कोने में दो मासूम चेहरों पर
कपड़ो से झांकती गरीबी पर
चेहरों पर छाई मायूसी पर
फिर भी इस उजाले की उत्सुकता पर
मेरी नजर पड़ी
पलटकर निगाहें जमाई अपनी बीयर पर
लगा थिरकने में भी डांस फ्लोर पर
भूल गया जो देखा था वहां पर
आते वक़्त गाड़ी में से उन चेहरो पर
फिर मेरी नजर पड़ी