खोना मैं चाहता हूँ कही
किसी सपने कि दुनिया में
आँखे जब मैं बंद करूँ
तो बस उजाला हो
चाहकर भी जा नहीं सकता
मैं उस हसीन दुनिया में वापस
आँखे जब बंद करूँ
तो बस उन लोगों का मेला हो
जिनकी आवाजों के बिन
कभी न बीतते थे मेरे दिन
कहाँ खो गये वो लोग
शायद निगल गयी जिंदगी उनको
या मैं व्यस्त हो गया
अपनी उस अंतहीन दौड़ में
शुरू किया था तालियाँ बजाना
उन्होंने साथ में खड़े होकर
दौड़ते-दौड़ते मैं इतना आगे आ गया
सब छूट गए पीछे जब देखा मुड़कर
रुकना चाहता हूँ मैं भी अब
करूँगा इंतज़ार किसी किनारे पर बैठकर
Abe saale how can u say we were left behind..we are running along...gaadi ke kaanch neeche kar...bagal ki bike apni hai:P
ReplyDeleteThere is nothing personal sir ....all dis is just like dat ...:P
DeleteEven this was written long back ...
There is nothing personal sir ....all dis is just like dat ...:P
DeleteEven this was written long back ...
There is nothing personal sir ....all dis is just like dat ...:P
DeleteEven this was written long back ...
गज़ब...लगे रहो भाई...काबिलियत आ रही है सामने
ReplyDeletenice touch..really appreciating...
ReplyDeleteदुःख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात
ReplyDeleteएक पर्दा यह झीना नील छिपाए हैं जिसमे सुख गात
race of life is like concentric circles with increasing radius...as life progresses radius increases and so is the exposure of life...it always tries to maintain the circle, if life has lots of chaos the circular velocity tends to increase and so it starts to loose circular shape, same is the case with lots of stability the radius tends to decrease... the essence is that life always tries to maintain a circle with a increasing radius tough slightly.... at the end of all it is an अंतहीन दौड़
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