स्वतंत्रता दिवस की इस पूर्व सांझ पर
जब मैं चारों और नजरें घुमाता हूँ
नजर आता है एक धुंधलका
खोये हुए चेहरे
भटके हुए लोग
दम तोडती उम्मीदें
दफने हुए आदर्श !
पर जब मैं ध्यान से सुनता हूँ
सुनाई देता है नेपथ्य में एक कोलाहल
हालात बदलने का
मुसीबतों से लड़ने का
अपने अधिकारों को पाने का
आदर्शों की नींव बनाने का !
इस कोलाहल को तीव्र करना होगा
धुंधलके को दूर करना होगा
पीछे हटने से कुछ नही होगा
आगे बढ़ स्वयं प्रकाश पुंज बनना होगा !