Tuesday, August 14, 2012

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व सांझ


स्वतंत्रता दिवस की इस पूर्व सांझ पर
जब मैं चारों और नजरें घुमाता हूँ
नजर आता है एक धुंधलका
खोये हुए चेहरे
भटके हुए लोग
दम तोडती उम्मीदें
दफने हुए आदर्श !

पर जब मैं ध्यान से सुनता हूँ
सुनाई देता है नेपथ्य में एक कोलाहल
हालात बदलने का
मुसीबतों से लड़ने का
अपने अधिकारों को पाने का
आदर्शों की नींव बनाने का !

इस कोलाहल को तीव्र करना होगा
धुंधलके को दूर करना होगा
पीछे हटने से कुछ नही होगा
आगे बढ़ स्वयं प्रकाश पुंज बनना होगा !

Monday, August 13, 2012

फूटी किस्मत


हर आँसू पर
क्या उसका नाम लिखा था
हर काँटों की डगर पर
क्या उसका नाम लिखा था
पैदा होने से पहले मौत पर भी
क्या उसका नाम लिखा था
भाई की झूठन पर भी
क्या उसका नाम लिखा था

उसके बचपन पर
घर का बोझ रखा था
उसकी किताबों पर
दहेज़ का बोझ रखा था
उसके सपनों पर
मर्यादा का बोझ रखा था
उसके जीवन पर
उपेक्षा का बोझ रखा था

इन काँटों पर भी चलकर
इस बोझ को भी उठाकर
हद तब हुई जब
उसकी फूटी किस्मत में
दहेज़ से जलना लिखा था !