Friday, April 10, 2015

भय

जकड़ लेता है कदम मेरे
संशय को देता है ये जन्म
विस्मृत करता है अपनी पहचान
ये डर !

जो इस भय पर विजय पाता है
वह कर्मयोगी अर्जुन कहलाता है
वही बन गांधी रास्ता दिखलाता है
वही बन भगतसिंह बधिरों को सुनाता है !

इस भय को भगाना होगा
मनुष्य की आत्म चेतना को जगाना होगा
स्वयं का स्वयं से परिचय कराना होगा
ज्ञान की रश्मि से प्रकाश फैलाना होगा !

स्व से कर साक्षात्कार
रखेगा मनुष्य नव निर्माण का आधार
एक ऐसे विश्व की सृष्टि होगी
जहाँ डर की कोई जगह ना होगी
छायी हर चेहरे पर एक हंसी होगी ! 

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